Poor Indian Labour amid Corona virus, Hunger, Politics and suffering
भगवान ने जब हमसे पूछा कौन हो?
तब हम भी अपनी दास्ताँ गाने लगे
हमने कहा हम देश के मजदूर हैं
मजबूर हम घर लौटकर जाने लगे
भगवान के यह बात माथे चढ़ गई
इस बात पर तो वो भी मुस्काने लगे
वो झट से बोले तुम वही इंसान हो
जिसको कि सड़कों पर भगाया जा रहा
हिस्से तुम्हारे कुछ नहीं लेकिन सुनो
है बजट जैसा कुछ बनाया जा रहा
मेहनत पसीना खून जिसका चूसकर
परदेश से औरों को लाया जा रहा

तुम हो निरे निर्लज्ज तुम बैचेन हो
एक बात तुमको है समझ आती नहीं
सरकार बनती है अमीरों के लिए
लेकिन गरीबी याद रख पाती नहीं
कर बंद आँखें बैठते हैं ठाठ से
इनको कभी सच्चाइयाँ भाती नहीं
भगवान भी जब ऐसे समझाने लगे
सब खेल फिर हमको समझ आने लगे
दो जून की रोटी कमाने हम गए
तब हाथ माँ के हमको याद आने लगे
इस नर्क से अच्छे कहीं तो गाँव थे
यह बात फिर हम सोच पछताने लगे
©पराग पल्लव सिंह
कविता का परिपेक्ष्य
यह कविता एक संकेत है कि मोदी जी भारत को किस आत्म निर्भरता की और ले जाना चाहते हैं। ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि आये दिन कोई न कोई घटना होती ही रहती है जैसे बरेली सड़क दुर्घटना (उत्तर प्रदेश ), सिरसा सड़क दुर्घटना (हरयाणा), भागलपुर (बिहार), इटावा और न जाने ऐसी कितनी कि जिनकी कोई खबर नहीं आयी।
परेशान किसको होना पड़ा ? परिवार किसने खोया ? जान किसकी गयी ? सरकार की ? मंत्रियों की ?
मान भी लिया जाए कि सरकार ने कई अहम फैसले लिए किन्तु गरीबों को अनदेखा कर देना कहाँ तक सही है ? कुछ बसों के ऊपर तीन तीन दिन तक राजनीति ? पर मजदूर जस के तस !
मेरी फिर से एक अपील रहेगी की यदि कोई भी मजदूर आपको आपके आसपास दिखे तो उसकी आत्म निर्भरता का परीक्षण न लेते हुए उसकी मदद जरूर करें।
इस काल में समय की मार सब पर पड़ी और उन भावों को कविताओं के जरिये शब्दों में पिरोने की कोशिश की है।
ज़रूर पढ़े मेरी अन्य कविताएं।
very nice
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Thank you
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Great
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Thank You
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Nice
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Thank You
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❤️❤️
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Thank You Dear
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😪सच लिखा है आपने।
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Bahut shukriya
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