Last updated on May 22nd, 2021 at 06:39 am
विश्व मजदूर दिवस पर एक कविता हर उस इज्जतदार, मेहनती इंसान के लिए जो अपनी रोजी रोटी खुद कमाता है और अपना पेट पालता है। इस हिंदी कविता में एक मजदूर के स्वाभिमानी होने की बात कही गयी है। अधिक जान्ने के लिए पढ़िए “मज़दूर”।
वह मजबूर नहीं है बिलकुल
उसको भी जीना आता है
कहते हो मजदूर उसे तुम
“वो खुद्दारी का खाता है !”
न वो तुमसे माँगने जाये
न ही कहीं हाथ फैलाये
जितनी जैसी मिल जाती है
खुशियाँ घर ले आता है
कहते हो मजदूर उसे तुम
“वो खुद्दारी का खाता है !”
एक एक दिन साल महीना
खून को अपने बना पसीना
सारे दुःखों के बादल वो
उससे रंगता जाता है
कहते हो मजदूर उसे तुम
“वो खुद्दारी का खाता है !”
© पराग पल्लव सिंह