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वो छोटे छोटे नन्हे बच्चे
कपड़े गंदे, दिल के अच्छे।
मैं एक हाथ से प्यार करूँ
वो दोनो हाथ बढ़ाते हैं।
बाहें जब भी मैं खोलूँ तो
वो झट से गले लगाते हैं।
अभी उन्हें कुछ पता नहीं
सपने भी हैं कच्चे कच्चे।
वो छोटे छोटे नन्हे बच्चे
कपड़े गंदे, दिल के अच्छे।
दुनियादारी से क्या करना
उनके अतरंगी सपने हैं।
उनकी तुतलती भाषा में
लगते कितने वो अपने हैं।
शैतानी का क्या कहना
सब घरवाले करते चर्चे।
वो छोटे छोटे नन्हे बच्चे
कपड़े गंदे, दिल के अच्छे।
उनसे बातें करने पर
नव उमंग छा जाती है।
छोटी मोटी कोई पीड़ा
पल भर में छू हो जाती है।
मैं मतलबियों से क्यूं सीखू
जब मुझे सिखाते हैं बच्चे।
वो छोटे छोटे नन्हे बच्चे
कपड़े गंदे, दिल के अच्छे।
उन नन्हे से हाथों में जब
छोटी सी कलम थमाता हूं।
घोड़े बिल्ली मोटर गाड़ी
सब रंगे हुए मैं पाता हूं।
छोटी छोटी आंखें देखो
जिनमें बसते सपने सच्चे।
वो छोटे छोटे नन्हे बच्चे
कपड़े गंदे, दिल के अच्छे।
जब उनमें शामिल होता हूं
तब थोड़ा काबिल होता हूं।
उनकी खुशियों की माला में
कोशिश के फूल पिरोता हूं।
जीवन की असली परिभाषा
तो हमें सिखाते हैं बच्चे।
ये छोटे छोटे नन्हे बच्चे
कपड़े गंदे, दिल के अच्छे।
©पराग पल्लव सिंह
Beautifully penned
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Badhiaa poem h
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