Last updated on May 22nd, 2021 at 06:38 am
Hum Kya Karte | Hindi Poem on Aurangabad Train Accident
हम थे कितनी आस में निकले
दो रोटी की तलाश में निकले
मिल जाते थे जो कुछ पैसे
लगता था आकाश में निकले
इस व्याधि ने ऐसा तोड़ा
के फिर हमको साँस न आई
इधर कुआँ था उधर थी खाई
हम क्या करते बोलो भाई……
बीवी बच्चे भी खुश रहते
फोन पे पापा पापा कहते
हम भी हँस के काट रहे थे
सारा घोर बुढापा सहते
अब न उनसे मिलना होगा
कैसी नीति ने घड़ी बनाई
इधर कुआँ था उधर थी खाई
हम क्या करते बोलो भाई……
शहरों में भी चमक बहुत थी
हमको भी आदत सी पड़ गई
पता जो चलता भाग निकलते
पर महामारी झट से बढ़ गई
सपने में भी न सोची थी
मौत भी हमको ऐसी आयी
इधर कुआँ था उधर थी खाई
हम क्या करते बोलो भाई……
किस पर ही तुम दोष मढोगे
या रातों को बुरा कहोगे
बस इतनी आशा है तुमसे
बचे हुओं का भला करोगे
हम न बचे पर शायद हमने
मौत तुम्हारी गले लगाई
इधर कुआँ था उधर थी खाई
हम क्या करते बोलो भाई……
©पराग पल्लव सिंह
औरंगाबाद ट्रेन दुर्घटना में अगर देखा जाये तो कहीं न कहीं हमारा, आपका और सभी का दोष है। इसमें उन मज़दूरों से बस इतनी भूल हो गयी कि वो भूख से व्याकुल हो गए , और चलते चलते थक गए। कहना आसान है कि उन्हें पटरी पर सोना नहीं चाहिए था या फिर ट्रेन को नहीं गुज़रना चाहिए था।
कित्नु जरा सोचिये !
पल भर को कल्पना कीजिये !
खुद को उस मजदूर की जगह पर रख कर देखिये!
यदि कुछ महसूस हुआ हो तो मान लेना की ये उसकी मानसिक स्थिति का दशमलव अंश भी नहीं था।
इस कविता, ” हम क्या करते ?” के माध्यम से मैं बहुत कुछ तो नहीं कह पाया पर कुछ पल के लिए उस मजदूर की तकलीफों , उसकी मजबूरियों को जिया। यह अनुभव अंदर से झकझोर देने वाला था।
आप सभी से एक विनम्र अनुरोध है, यदि आपके आसपास कोई भी बाहर का व्यक्ति काम करता था और अब अपने घर जाने में असमर्थ है , तो किसी का इंतज़ार न करें ! खुद से पहल करें! और जितनी भी हो सके…
उन कामगारों की मदद ज़रूर करें।
कमेंट्स में अपने विचार जरूर प्रस्तुत करें।
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